जुआरी - Wiktionary

जुआरी जुआरी

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9 जुआरी गिरफ्तार: रात के सन्नाटे में होटल में चल रहा था जुआ…तभी पुलिस आ धमकी, 9 जुआरी समेत 2 लाख से ज्यादा की नगदी जब्त… – NPG

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परमात्मा 🙏की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,🍷शराबी,🚭नशेड़ी हो वो सब बुराइयां 🙇‍♂️छोड़ देता है ।शराब 🍾🍷सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती🙇‍♂️ है शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं:- 1. फेफड़े, 2. जिगर (लीवर), 3. गुर्दे 4. हृदय। सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है ।

परमात्मा 🙏की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,🍷शराबी,🚭नशेड़ी हो वो सब बुराइयां 🙇‍♂️छोड़ देता है ।शराब 🍾🍷सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती🙇‍♂️ है शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं:- 1. फेफड़े, 2. जिगर (लीवर), 3. गुर्दे 4. हृदय। सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है । submitted by Mi_tesh96 to SaintRampalJi [link] [comments]

Supreme God Kabir Saint Rampal ji 1)परमात्मा की सतभगति मर्यादा में रहकर करने से कैंसर,एड्स जैसी बीमारी भी ठीक होती है । 2)सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है। अधिक जानकारी के लिए देखे साधना टीवी रात्रि 7:30 3)परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,शराबी,नशेड़ी हो व

Supreme God Kabir Saint Rampal ji 1)परमात्मा की सतभगति मर्यादा में रहकर करने से कैंसर,एड्स जैसी बीमारी भी ठीक होती है । 2)सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है। अधिक जानकारी के लिए देखे साधना टीवी रात्रि 7:30 3)परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,शराबी,नशेड़ी हो व submitted by narayandaskori to u/narayandaskori [link] [comments]

परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है

परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है submitted by nandramdhaker to SaintRampalJi [link] [comments]

#Merciful_LordKabir परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है ।अधिक जानकारी के लिए देखें ईश्वर चैनल शाम 8:30pm

#Merciful_LordKabir परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है ।अधिक जानकारी के लिए देखें ईश्वर चैनल शाम 8:30pm submitted by Devkumari22 to u/Devkumari22 [link] [comments]

#Miracles_Of_TrueWorship सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है। वेद भी बताते हैं पूर्ण परमात्मा कि सत भक्ति से रोगियों के रोग नाश होते हैं सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है

#Miracles_Of_TrueWorship सत भक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है। वेद भी बताते हैं पूर्ण परमात्मा कि सत भक्ति से रोगियों के रोग नाश होते हैं सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है submitted by dharmveer-yadav to u/dharmveer-yadav [link] [comments]

#Message_To_AmitabhBachchan अमिताभ बच्चन जी के लिए महत्वपूर्ण संदेश मृत्यु के समय इंसान के साथ कुछ नहीं जाता ना कोई संगी साथी "करीब आवात संग ना जात संगती करता हुआ दर बांधे हाथी । कह कबीर अंत की सारी जैसै हाथ झाड़ चल उठा जुआरी ।। साथ तो सिर्फ सद्भक्ति धन जाएगा #SundayMorning

#Message_To_AmitabhBachchan अमिताभ बच्चन जी के लिए महत्वपूर्ण संदेश मृत्यु के समय इंसान के साथ कुछ नहीं जाता ना कोई संगी साथी submitted by yadramsahu to u/yadramsahu [link] [comments]

#Miracles_Of_TrueWorship👉परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है ।👉👉अधिक जानकारी के लिए देखें साधना टीवी चैनल शाम शाम 7:30 बजे

#Miracles_Of_TrueWorship👉परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है ।👉👉अधिक जानकारी के लिए देखें साधना टीवी चैनल शाम शाम 7:30 बजे submitted by manish040 to u/manish040 [link] [comments]

सतगुरु रामपाल जी महाराज से सतभक्ति प्राप्त करके आज लाखों व्यक्ति नशा मुक्त जीवन जी रहे हैं।परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है । #धूम्रपान_नरक_का_रास्ता

सतगुरु रामपाल जी महाराज से सतभक्ति प्राप्त करके आज लाखों व्यक्ति नशा मुक्त जीवन जी रहे हैं।परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बड़ा जुआरी, शराबी, नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है । #धूम्रपान_नरक_का_रास्ता submitted by Lovekush1234 to SaintRampalJi [link] [comments]

#सतभक्ति_से_अद्भुत_लाभ परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,शराबी,नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है ।

#सतभक्ति_से_अद्भुत_लाभ परमात्मा की सत भक्ति करने से कितना भी बढ़ा जुआरी,शराबी,नशेड़ी हो वो सब बुराइयां छोड़ देता है । submitted by rashmisahu to u/rashmisahu [link] [comments]

हमीरपुर के एक होटल से 3 जुआरी को रंगे हाथ गिरफ्तार।

हमीरपुर के एक होटल से 3 जुआरी को रंगे हाथ गिरफ्तार। submitted by Smnewshimachal to u/Smnewshimachal [link] [comments]

पराभव सुत्त

"सुविजानो भवं होति, अविजानो पराभवो । धम्मकामो भवं होति, धम्मदेस्सी पराभवो ।।" - तथागत बुद्ध
एक समय तथागत गौतमबुद्ध श्रावस्ती के जेतवन आराम में विहार करते थे। उस समय एक देवता रात बितने पर जहाँ भगवान थे, वहां गया और अभिवादन कर एक ओर खडा हो गया। एक ओर खड़े हुए उस देवता ने मनुष्य की अवनती किन कारणों से होती है, वह जानने के लिए पुछा।
उत्तर में तथागत बुद्ध ने कहा -
उन्नतिशील की पहचान सरल है और जो उन्नतिशील नही है, उस मनुष्य की भी पहचान सरल है ।
जो धम्म उन्नति का काम करता है या कामना करता है, वो उन्नत होता है , बलवान होता है और जो धम्म से या ( सदाचार ) से द्वेष करता है या करने वाला है , वो पतित होता है ,नष्ट होता है ।
पराभव सुत्त में मनुष्य की अवनती के 12 कारण तथागत ने बताये हैं। इन कारणों को जानकर, जो व्यक्ति भय को देखता है और इन कारणों को दूर करता है और शील के मार्ग पर चलने लगता है। तब वह अवनती से बचता है और दुःख से छुटकारा पाकर जीवन में सुख का अनुभव करता है।
किं पराभवतो मुखं ?
भगवान ने पराभव (अवनति, पतन ) के मुख्य 12 कारण बताये ।
अवनतिगामी पुरूष-
1) धम्मद्वेषी होते हैं । 2) जिसे दुर्जन लोग प्रिय लगते हैं, सज्जनों से प्रेम नहीं करता , असत्पुरूषों को पसन्द करता हैं। 3) व्यक्ति निद्रालु,भीड-भाड में मस्त रहता हैं, परिश्रम न करने वाला, आलसी और क्रोधी होता हैं । 4) समर्थ होने पर भी अपने बूढे माता- पिता का पोषण नहीं करता हैं । 5) श्रमण या किसी दूसरे याचक को झूठ बोलकर धोखा देता हैं । 6) बहुत धनवान पुरूष, जो सोना और भोजन से सम्पन्न हैं, परंतु जब वह अकेला ही स्वादिष्ट भोजन करता हैं । 7) जो पुरूष जाति, धन और गोत्र का घमण्ड करता हैं, अपने भाई-बन्धुओं का भी जाति के कारण अनादर करता हैं, वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं । 8) जो व्यक्ति स्त्रियों के पीछे पडा रहता हैं, शराबी और जुआरी हैं, कमाए धन को नष्ट कर देता हैं, वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं । 9) जो अपनी पत्नि से असंतुष्ट रहता हैं, वेश्याओं और पराई स्त्रियों के साथ दिखाई देता हैं, वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं । 10) वृद्ध व्यक्ति जब नव युवती को ( ब्याह कर) लाता हैं, तो उसकी ईर्ष्या के कारण वह सो नहीं सकता, वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं । 11) जब किसी लोभी - लालची या सम्पत्ति को नष्ट करने वाली स्त्री या पुरूष को सम्पत्ति का स्वामी बना देता हैं, तो वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं । 12) क्षत्रिय कुल में उत्पन अल्प सम्पत्ति वाला और महालालची पुरूष जब राज्य की कामना करता हैं, तो वह उसकी अवनति का मुख्य कारण हैं ।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏 Ref: पराभव सुत्त
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19 जनवरी 2021: दैनिक संचालक पोस्ट (Daily Moderator Post)

1. आज का शब्द: मनोवैज्ञानिक

शब्द (Word) : मनोवैज्ञानिक (Pronunciation)
प्रकार (Type) : संज्ञा (noun (m))
लिंग (Gender) : पुल्लिंग (Masculine)
अर्थ (Meaning): psychologist
वाक्य में प्रयोग (Usage in a sentence):
मैं बड़ी होकर मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हूँ। (I want to be a psychologist when I grow up.)
आप भी अब इस शब्द के साथ अपने वाक्य बनाइए!



2. आज का उद्धरण : कवि कह गया है

"भाषा के पर्यावरण में कविता की मौजूदगी का तर्क जीवन-सापेक्ष है : उसके प्रेमी और प्रशंसक हमेशा रहेंगे—बहुत ज़्यादा नहीं, लेकिन बहुत समर्पित! "
 ~कुँवर नारायण 



3. आज की कविता: प्रेमपत्र

प्रेत आएगा
किताब से निकाल ले जाएगा प्रेमपत्र
गिद्ध उसे पहाड़ पर नोच-नोच खाएगा
चोर आएगा तो प्रेमपत्र चुराएगा
जुआरी प्रेमपत्र पर ही दाँव लगाएगा
ऋषि आएँगे तो दान में माँगेंगे प्रेमपत्र
बारिश आएगी तो
प्रेमपत्र ही गलाएगी
आग आएगी तो जलाएगी प्रेमपत्र
बंदिशें प्रेमपत्र पर ही लगाई जाएँगी
साँप आएगा तो डँसेगा प्रेमपत्र
झींगुर आएँगे तो चाटेंगे प्रेमपत्र
कीड़े प्रेमपत्र ही काटेंगे
प्रलय के दिनों में
सप्तर्षि, मछली और मनु
सब वेद बचाएँगे
कोई नहीं बचाएगा प्रेमपत्र
कोई रोम बचाएगा
कोई मदीना
कोई चाँदी बचाएगा, कोई सोना
मैं निपट अकेला
कैसे बचाऊँगा तुम्हारा प्रेमपत्र।
 ~बद्री नारायण 



4. आज के रचनाकार: बद्री नारायण

मूल नाम : बद्री नारायण
जन्म : 05/10/1965 | भोजपुर, बिहार
सुपरिचित कवि-विचारक। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।
कवितायें:
  1. प्रेमपत्र
कविता संग्रह: यहाँ क्लिक करें
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एक ईमानदार व्यक्ति होना वास्तव में बड़ी बात है!

एक ईमानदार व्यक्ति होना वास्तव में बड़ी बात है!
वू मिंग, चीन
2004 में एक सहेली ने एक दिन मुझसे कहा: "हर दिन तुम जल्दी उठती हो और दिन भर कपड़े काटने में व्यस्त रहती हो, तुम खुद को थका देती हो, फिर भी तुम धन अर्जित नहीं कर पाती हो। आज का समाज पैसे कमाने के लिए जीभ पर निर्भर करता है, जैसा कि इस लोकप्रिय कहावत में कहा गया है: 'मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में एक चतुराईपूर्ण ज़ुबान का होना बेहतर है।' तुम जानती हो कि अब मैं प्रत्यक्ष बिक्री व्यवसाय में सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों को बेच रही हूँ, न केवल यह मुझे सुंदर बनाता है, मुझे हर दिन बहुत अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है, बहुत सारे पैसे कमाने के लिए मुझे बस अपने ग्राहकों से कुछ बातें करनी होती हैं और अपने उत्पादों को बेचना होता है। तुम अपना काम बदलकर मेरे साथ सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों को बेचने क्यों नहीं आ जाती हो?" मैंने अपनी सहेली को देखा, वह वास्तव में पहले से कहीं अधिक सुंदर थी, और फिर मैंने सोचा कि किस तरह मैं 10 साल से अधिक समय के लिए बस कपड़े बनाये जा रही थी, कैसे मैं वास्तव में इस काम में कोई धन अर्जित नहीं कर पाई थी, और कैसे अब मैं जवान तो हो नहीं रही थी। अगर यह वास्तव में ऐसा ही था जैसा कि मेरी सहेली बता रही थी, अगर अपना काम बदल कर प्रसाधन उत्पादों को बेचकर मैं आसानी से धन अर्जित कर सकती थी, और यहाँ तक कि मैं अधिक युवा और सुन्दर भी लग सकती थी और दूसरों से बड़ी प्रशंसा भी पा सकती थी, तो वह तो बहुत बेहतर होगा! जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मैंने उसे बिलकुल वहीं कह दिया कि मैं उस कंपनी का एक हिस्सा बनने के लिए तैयार थी। बाद में, एक निरीक्षण के बाद, मैंने 3,000 युआन मूल्य के उत्पादों को खरीद लिया, और मैंने इस कंपनी के लिए सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में एक सौंदर्य सलाहकार के रूप में अपना काम शुरू कर दिया।
एक सहकर्मी ने मुझे बताया कि सौंदर्य सलाहकार बनने के बाद, यदि हम 8 से 12 अन्य सौंदर्य सलाहकारों को विकसित कर सकते हैं, तो हमें विक्रेता के रूप में काम करने के लिए पदोन्नत किया जा सकता है। लेकिन अगर हम एक विक्रेता बनना चाहते हैं तो हमारे पास अच्छे कार्य-संपादन की स्थिति के रूप में उत्पादों का ऑर्डर देने वाले अधिक ग्राहक होने चाहिए। इसके बाद, मैंने अपने कार्य-संपादन को बढ़ाने के तरीकों के बारे में सोचते हुए अपने दिमाग को झकझोरना शुरू कर दिया। मैंने अन्य लोगों से सलाह ली, और विक्रय की विधियों का अध्ययन किया; हमारे उत्पादों को आज़माने के लिए हमारी दुकान में अक्सर ग्राहकों को आमंत्रित किया, और जिन उत्पादों को मैंने दिखाया था उन्हें खरीदने के लिए उन्हें मनाया; जब भी मेरे पास समय होता, तो मैं अपने आपको व्यक्त करते समय अपने बोलने के स्तर को बढ़ाने के लिए दर्पण के सामने बोलने का अभ्यास करती थी, ताकि मैं ग्राहकों से बेहतर बातचीत कर सकूँ। मेरी लगातार कड़ी मेहनत से मुझे धीरे-धीरे अधिक ग्राहक मिले। अपने ग्राहक-आधार को दृढ बनाने के लिए, मुझे कंपनी में विक्रय की प्रचारक गतिविधियों का साथ देना पड़ा था और हमारी कार्यशालाओं में भाग लेने के लिए ग्राहकों को आमंत्रित करने हेतु उन्हें फोन करना पड़ता था, जहाँ वे हमारे उत्पादों की प्रभावशीलता का अनुभव कर सकते थे, और साथ ही मैं कंपनी के उत्पादों और हमारी पुरस्कार प्रणाली, विक्रय प्रचार, आदि को पेश कर सकती थी, जिससे ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके। मैं अक्सर एक घंटे से अधिक समय तक बोलती रहती, और तब तक नहीं रूकती थी जब तक कि ग्राहक उन उत्पादों को खरीदने हेतु पर्याप्त रूप से संतुष्ट न हो जाएँ। अपने हाथों में इतनी आसानी से अर्जित पैसों को देखकर मुझे बहुत ख़ुशी महसूस होती थी: पैसे कमाने के लिए मेरे मुंह पर निर्भर करना वास्तव में मेरे पिछले नेक शारीरिक श्रम से पैसा अर्जित करने की तुलना में बहुत अधिक सहज था, और मैंने यह सोचा कि यदि मैं कड़ी मेहनत करना जारी रखती हूँ, तो विक्रेता बन पाना मेरे लिए बिलकुल करीब ही था।
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एक बार अपने चेहरे पर मुंहासे लिए एक लड़की हमारी दुकान में आई, और मैंने मन ही मन सोचा: यह एक मौक़ा है, मुझे इस लड़की को सुंदर दिखने की ज़रूरत महसूस करानी होगी और उसे कुछ उच्च लाभ वाले उत्पादों की सिफारिश करनी होगी, इस तरह न केवल मैं बहुत पैसे कमा सकती हूँ, बल्कि मैं उसे अपने एक दीर्घकालिक ग्राहक में बदल सकती हूँ, और सही समय पर मैं उसे और भी अधिक ग्राहकों को लाने के लिए प्रेरित करुँगी, जिससे उत्पादों की मेरी बिक्री में वृद्धि होगी, और उसके कारण स्वाभाविक रूप से मेरे कार्य-संपादन में तरक्की होगी। मैंने देखा कि उसके चेहरे पर मुंहासे उतने गंभीर नहीं थे, लेकिन बड़ा मुनाफा पाने के लिए, मैंने एक अतिरंजित स्वर में कहा: "ओह! अगर हम तुरंत आपके चेहरे के मुंहासों का इलाज नहीं करते हैं तो वे बढ़कर आपकी त्वचा में गहरे हो जाएँगे और नुकसान पहुंचाएँगे, और तब ऐसे कोई उत्पाद नहीं होंगे जो इसे ठीक कर सकें, और यह बात भविष्य में आपके चेहरे की त्वचा को भी प्रभावित करेगी। यह इतना गंभीर हो सकता है कि आपका चेहरा उबड़खाबड़ हो जाएगा और मुंहासों से ढँक जाएगा। न केवल यह आपकी सूरत को प्रभावित करेगा, इसका आपके भविष्य पर भी असर पड़ेगा, और यह एक समस्या होगी!" जब लड़की ने यह सुना, तो वह बहुत ही घबरा गई और उसने तुरंत चाहा कि मैं उसे कोई भी ऐसे उत्पाद दे दूँ जो उसकी मदद कर सके। इसलिए मैंने मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए, उसे दिखाने के लिए तुरंत कुछ उत्पाद निकाले, और वह 1,000 युआन के उत्पादों को लेकर गई। मैंने मन ही मन सोचा: ऐसा लगता है कि अगर मैं पैसे बनाना चाहती हूँ तो मैं बहुत ईमानदार नहीं हो सकती, और मुझे एक ग्राहक की कमज़ोरियों को लेकर उन्हें उनकी ही प्राथमिकताओं के आधार पर अतिरंजित करना होगा, क्योंकि यही वह है जो उन्हें हमारे उत्पादों को खरीदने के लिए तैयार करता है। इसके बाद, अपने उत्पादों को बेचने के लिए मैंने विभिन्न प्रकार के ग्राहकों पर विभिन्न तरीक़ों का उपयोग करना सीख लिया, और परिणामस्वरूप कंपनी में मेरा कार्य-संपादन अधिकाधिक बढ़ने लगा।
मैंने चार साल तक कड़ी मेहनत की, और अंत में विक्रेता के स्तर पर पदोन्नत हुई, लेकिन इस स्थिति को बनाये रखना आसान नहीं था। कंपनी के अलिखित नियमों के अनुसार: हमारा कार्य-संपादन पूरी तरह से ऑर्डर पर आधारित होता है, हमारी उपलब्धि जितनी अधिक होगी, हमारी आय उतनी ही अधिक होगी, और हमारा ओहदा जितना ही ऊँचा होगा, उतने ही अधिक पुरस्कार हमें मिलेंगे। इन लक्ष्यों तक पहुँचने और विक्रेताओं के रूप में हमारे कार्य-संपादन को पूरा करने की ओर सौंदर्य सलाहकारों को उत्पादों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, हमने एक पुरस्कार विधि का उपयोग किया। कभी-कभी, जब सौंदर्य सलाहकार खरीद नहीं करते थे, हमें उत्पादों को खरीदने के लिए अपने धन का उपयोग करना पड़ता थे ताकि हम अपने कार्य-संपादन में योग्य बने रह सकें। यह हमारे पास कई उत्पादों की भरमार कर देता था, और एक लंबी अवधि तक न बेचे जाने के बाद, इन उत्पादों की समयसीमा समाप्त होने लगती थी। हमारे कार्य-संपादन को बनाए रखने के लिए, हम इन जल्द से जल्द गतावाधिक या एक्सपायर होने वाले उत्पादों को बेचने के लिए ग्राहकों को छूट दिया करते थे। एक बार, मेरे एक सहयोगी ने एक ग्राहक को एक ऐसा उत्पाद बेच दिया जो समाप्त होने वाला था, और बाद में ग्राहक का चेहरा खिलते फूल की तरह सूज कर लाल हो गया। इससे ग्राहक को नाराज़गी हुई और वे मेरे सहयोगी से निपटने के लिए उसे ढूँढते हुए आ पहुँचे, मेरे सहयोगी को इतना डर हुआ कि उन्हें यही पता न था कि अब क्या किया जाए। अंत में, इस पर बातचीत करने के बाद, उन्होंने ग्राहक को कुछ क्षतिपूर्ति दी और इस मुसीबत को हल किया गया। जब ऐसा हुआ, तो मैंने सोचा कि प्रत्येक महीने, अपने कार्य-संपादन को पूरा करने के लिए, मैं भी अधिक मात्रा में संचित उन उत्पादों को बेचूँगी जो गतावाधिक होने वाले थे, और इन जल्द ही समाप्त होने वाले उत्पादों के लिए कंपनी की ओर से कोई गारंटी नहीं थी, इसलिए यदि संयोग से कोई ग्राहक इन उत्पादों में से किसी एक का उपयोग करने के बाद त्वचा की समस्या विकसित करे और मुझ पर मुकदमा दायर करने की इच्छा से आए, तो मुझे क्या करना होगा? इससे मुझे लगातार अधिक असहज महसूस हुआ, इससे मैं इतना डर गई कि मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, और मैंने अपने आप से कहा कि अब से मैं उन उत्पादों को नहीं बेचूँगी जिनकी कालावधि समाप्त होने वाली थी। लेकिन फिर मैंने इसके बारे में कुछ आगे सोचा: यदि मैं सभी उत्पादों को नहीं बेच डालती हूँ तो मेरा कार्य-संपादन पूरा नहीं होगा, और फिर मेरे पास विक्रेता होने की योग्यता नहीं रहेगी, और इससे पहले कि मैं इसे जान भी सकूँ, मुझे एक साधारण सौंदर्य सलाहकार बन जाने को पदावनत कर दिया जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि अमीर होने के जिस सपने को पूरा करने के लिए मैंने काम किया था, वह एक असंभावी योजना बनकर रह जाएगी, और इतने सारे वर्षों की मेरी कड़ी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी! जब मैंने अतीत और भविष्य के बारे में सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि विक्रेता होने की मेरी योग्यता को बनाये रखने के लिए, मैं इसे कुछ ख़ास बदल नहीं पाऊँगी। अगर दूसरे लोग ऐसा कर सकते थे तो मैं क्यों नहीं? तो, मैं इस अलिखित व्यावसायिक नियम के साथ चलती रही।
2012 में मेरे एक मित्र ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के लिए प्रेरित किया, और तब से मैंने अक्सर परमेश्वर के वचन को पढ़ा है, परमेश्वर से प्रार्थना की है और भाइयों और बहनों के साथ मिलकर सहभागिता की है। सहभागिता के दौरान, सभी भाई-बहन खुलकर दिल की बात करते हैं, और अपनी जानकारी और परमेश्वर के वचन के बारे में अपने अनुभव पर वार्तालाप करते है, और मुझे वास्तव में उनकी बातें सुनकर आनंद मिलता है। एक दिन, मैंने परमेश्वर के इस वचन को पढ़ा: "तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर एक ईमानदार मनुष्य को पसंद करता है। परमेश्वर के पास निष्ठा का सार है, और इसलिए उसके वचन पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, उसका कार्य दोषरहित और निर्विवाद है। यही कारण है कि क्यों परमेश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके साथ पूरी तरह से ईमानदार हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "तीन चेतावनियाँ")। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मैंने पाया कि परमेश्वर वफ़ादार है और वह ईमानदार लोगों को पसंद करता है। परमेश्वर चाहता है कि हम सभी भी ईमानदार व्यक्ति बनें, झूठ न बोलें, दूसरों को धोखा न दें। मैंने उन सभी बेईमान शब्दों के बारे में सोचा जिनका इस्तेमाल मैंने व्यवसाय करने और मुनाफ़ा कमाने की कोशिश में ग्राहकों को धोखा देने के लिए हर दिन किया था, वह मुनाफ़ा जिसे मैंने अपने ग्राहकों के विश्वास के साथ धोखा कर के प्राप्त किया था। मैंने पैसे कमाने के लिए बेईमान तरीक़ों का इस्तेमाल किया था। ये सभी बातें बेईमानी की अभिव्यक्तियाँ थीं। अगर मैं इसी राह पर चलती रही, तो परमेश्वर मुझसे कैसे प्रेम कर सकता था? अब मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, मुझे अपने भाइयों और बहनों की तरह होना चाहिए और एक ईमानदार व्यक्ति होने का और सच बोलने का अभ्यास करना चाहिए। इसी तरह मैं परमेश्वर को खुश करने और उसकी मंजूरी प्राप्त करने में सक्षम हो सकूँगी।
लेकिन वास्तविक जीवन में, लाभ का सामना करते समय, एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करना उतना आसान नहीं था जितना कि मैंने कल्पना की थी कि यह होगा। एक दिन एक ग्राहक मेरे पास 7,000 युआन के सौन्दर्य प्रसाधन उत्पादों की सूची लेकर आई जिन्हें वह खरीदना चाहती थी। मैंने सूची को देखा और पाया कि हमारे स्टोर में वे सभी उत्पाद मौजूद नहीं थे, इसलिए मैं सोचने लगी कि मुझे क्या करना चाहिए। क्या मुझे उसे सच्चाई बता देनी चाहिए, या ... मुझे अपने दिल में एक तीव्र संघर्ष महसूस हुआ: अब मैं परमेश्वर में विश्वास करने लगी हूँ, झूठ बोलना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, मैं अब लोगों को पहले की तरह धोखा नहीं दे सकती हूँ; लेकिन अगर मैं इस ग्राहक को सच बता देती हूँ तो ज़ाहिर है कि मैं इस समय उसके साथ सौदा नहीं कर पाऊँगी, और शायद वह अगली बार वापस नहीं आएगी, जिसका अर्थ यह होगा कि उससे पैसे कमाने का अवसर अब नहीं रहेगा। हाय, झूठ बोलना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, लेकिन झूठ नहीं बोलना दो हज़ार युआन से अधिक मुनाफ़े को खोने के समान है जो मेरे हाथों में आने वाला था, जिस के बारे में अगर मेरे सहकर्मियों ने जाना, तो वे निश्चित रूप से मुझ पर हँसेंगे, इसलिए इस बार तो मैं (चालाकी) कर सकती हूँ, और अगली बार मैं ऐसा नहीं करूँगी। तो मैं ग्राहक के पास गई और मैंने उससे कहा: "मैं एक त्वचा-विशेषज्ञ हूँ, अगर आप मेरी सलाह मानेंगी और उन उत्पादों का उपयोग करेंगी जिनकी मैं सिफ़ारिश करती हूँ तो मैं गारंटी देती हूँ कि आपकी त्वचा बेहतर हो जाएगी।" मैंने अपनी वाकपटुता पर भरोसा किया, ग्राहक से एक घंटे से अधिक बात की, जब तक वह अंततः उन उत्पादों को खरीदने के इच्छुक न हो गई जिनकी मैंने सिफ़ारिश की थी। तो मैंने उसे देने के लिए 7,000 युआन मूल्य के उच्च श्रेणी के उत्पादों का एक यादृच्छ संग्रह इकट्ठा किया। उसके जाने के बाद मैंने अपने हाथों में उस रकम की ओर देखा लेकिन मुझे ज़रा भी ख़ुशी महसूस नहीं हुई। बल्कि मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई क्योंकि मैंने एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास नहीं किया था जिसकी परमेश्वर को अपेक्षा है। कई दिनों के बाद ग्राहक ने मुझे अचानक फोन किया और उन उत्पादों को वापस करना चाहा। उसने कहा कि जो उत्पाद मैंने उसे दिए थे, उनका उपयोग करके उसे सहज नहीं लग रहा था। मैंने उसे मनाने के लिए वो हर कोशिश की जो मैं कर सकती थी, लेकिन उसका दिमाग नहीं बदला जा सका। इस घटना के बाद, एक के बाद दूसरे ग्राहक ने अपने उत्पादों को वापस करना चाहा। जैसे जैसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का यह सिलसिला मेरे साथ होने लगा, मैंने इन बातों पर चिंतन करना शुरू कर दिया: खुद को लाभ पहुंचाने के लिए मैंने हमेशा इन उत्पादों को अपने ग्राहकों को धोखे से बेचने के लिए, कपटपूर्ण बातों का उपयोग किया है। यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, लेकिन विक्रेता के रूप में अपनी योग्यता को बनाये रखने के लिए मैंने इसे किया है। सच्चाई के बारे में पूरी तरह से जागरूक होने पर भी मैं जानबूझकर इसके विपरीत गई और अपना धंधा करने के लिए मैंने धोखाधड़ी के तरीकों का उपयोग जारी रखा। परमेश्वर शुद्ध और पवित्र है, वह मुझे एक बात कहने तथा कुछ और करने की अनुमति कैसे दे सकता है? हाल में जो ये घटनाएँ हुईं, उनके लिए केवल मैं खुद ही दोषी थी, मैंने जो फसल बोयी थी, वही मैं काट रही थी। यह परमेश्वर का निपटना और अनुशासन था, और परमेश्वर मुझे बचा रहा था। लेकिन मेरे सामने मुनाफ़े को देखकर मुझे समझ में नहीं आता था कि क्यों मैं परमेश्वर के वचन के अनुसार कार्य करना चाहती तो थी, लेकिन कर नहीं पाती थी। मैं परमेश्वर के सामने बस प्रार्थना कर सकती थी और खोज कर सकती थी।
बाद में, मैंने परमेश्वर के उस वचन को पढ़ा जहाँ यह कहा गया है: "जब एक बार मनुष्य को ऐसे धोखे से दूषित कर दिया जाता है, तो वह उस व्यक्ति के समान होता है जो जुए में शामिल होता है और फिर एक जुआरी बन जाता है। अनभिज्ञता में, वह अपने धोखाधड़ी के व्यवहार को मंजूरी देता है और उसे स्वीकार कर लेता है। अनभिज्ञता में, वह धोखाधड़ी को जायज़ व्यावसायिक व्यवहार मान लेता है, और धोखाधड़ी को अपने ज़िन्दा बचे रहने के लिए और अपने जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी माध्यम मान लेता है; वह सोचता है कि ऐसा करने के द्वारा वह जल्दी से धनी बन सकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत में लोग इस प्रकार के व्यवहार को स्वीकार नहीं करते हैं, जब तक वे व्यक्तिगत रीति से एवं प्रत्यक्ष रूप से इसकी कोशिश नहीं करते हैं और अपने स्वयं के तरीके से इसके साथ प्रयोग नहीं कर लेते हैं, वे इस व्यवहार को और इस रीति से कार्यों को अंजाम देने को नीची दृष्टि से देखते हैं, और तब उनका हृदय धीरे धीरे रूपान्तरित होना शुरू होता है। अतः यह रूपान्तरण क्या है? यह इस प्रवृत्ति (प्रचलन) की मंजूरी एवं स्वीकृति है, इस प्रकार के विचार की स्वीकृति एवं मंजूरी जिसे तुम्हारी सामाजिक प्रवृत्ति के द्वारा तुम्हारे भीतर डाला गया है। अनभिज्ञता में, तुम महसूस करते हो कि यदि तुम व्यवसाय में धोखा नहीं देते हो तो तुम हानि उठाओगे, यह कि यदि तुम धोखा नहीं देते हो तो तुम किसी चीज़ को खो चुके होगे। अनजाने में, यह धोखाधड़ी तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा मुख्य आधार बन जाती है, और साथ ही एक प्रकार का व्यवहार भी बन जाती है जो तुम्हारे जीवन के लिए एक ज़रूरी नियम है। जब मनुष्य इस प्रकार के व्यवहार एवं ऐसी सोच को स्वीकार कर लेता है उसके बाद, क्या मनुष्य का हृदय किसी परिवर्तन से होकर गुज़रता है? तुम्हारा हृदय बदल गया है, अतः क्या तुम्हारी ईमानदारी बदल गई है? क्या तुम्हारी मानवता बदल गई है? (हाँ।) अतः क्या तुम्हारा विवेक बदल गया है? (हाँ।) मनुष्य की सम्पूर्णता एक गुणात्मक परिवर्तन से होकर गुज़रती है, उनके हृदय से लेकर उनके विचारों तक, उस हद तक कि वे भीतर से लेकर बाहर तक बदल जाते हैं। यह परिवर्तन तुम्हें परमेश्वर से दूर और दूर रखता है, तथा तुम और भी अधिक शैतान के अनुरूप, तथा और भी अधिक उसके समान होते जाते हो" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "स्वयं परमेश्वर, अद्वितीय VI")। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल की उलझन को उजागर कर दिया, मुझे समझ में आ गया कि अपने मुनाफ़े को मेरे सामने रखकर मैं परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में नहीं ढाल सकती थी, मैं उस ईमानदार व्यक्ति की तरह नहीं जी सकती थी जिसकी परमेश्वर को अपेक्षा है, और इनका कारण यह था कि मैं समाज की बुरी रुझानों से गहराई से भ्रष्ट हो गई थी और मैं जीने के लिए शैतान के ज़हर पर निर्भर करती थी। "मैं तो बस अपने लिए सोचूँगी, बाक़ियों को शैतान ले जाए।" "मनुष्य अमीर बनने के लिए कुछ भी करेगा।" "जैसे एक छोटा दिमाग़ कोई सज्जन व्यक्ति नहीं बनता, एक असली आदमी बिना ज़हर के नहीं होता है।" शैतान के ये ज़हर पहले से ही मेरे भीतर गहरी जड़ें बना चुके थे, जिसकी वजह से पूरी तरह से जागरूक होने के बावजूद मैं सच्चाई का अभ्यास करने में असमर्थ थी और जब एक सामान्य व्यक्ति होने की स्थिति आती थी, तो मैं सही और गलत का सहज विवेक खो बैठती थी, जिससे मैं परमेश्वर से निरंतर दूर होती गई थी। मैंने सोचा कि मैंने कैसे सब से ऊपर दौलत को मानने की सामाजिक प्रवृत्ति का अंधाधुंध पालन किया था, और मैंने कैसे मान लिया था कि ईमानदार होने और कष्ट सहने के लिए तैयार होना उतना अच्छा नहीं था जितना जल्दी से पैसे कमाने के लिए धोखाधड़ी के तरीकों का उपयोग करना, जिससे मुझे अपना काम बदलना पड़ा था और मैं सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पादों को बेचने लगी थी, जहाँ शुरू से ही मैंने शैतान के जीवन दर्शन का उस राह पर अनुसरण किया था जहाँ "मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में चतुराईपूर्ण जुबान होना बेहतर है।" अपना व्यवसाय करते समय मैंने अपनी वाकपटुता पर निर्भर किया, हमेशा मेरे ग्राहकों को धोखा देने के लिए कपटपूर्ण शब्दों का उपयोग किया, और अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए जो कुछ भी कहना पड़ा, सो कहती रही। मैंने खुद से कहा कि धोखाधड़ी का यह काम सर्व-सामान्य था, कि हर कोई ऐसा करता था, कि अगर मैं ऐसा न करूँ तो मैं घाटे में रहूँगी, और ऐसी सोच ने मुझे क्या करना चाहिए इसके विवेक की उपेक्षा करने के लिए, और सत्य को जानते हुए भी उसका अभ्यास न करने के लिए, प्रेरित किया। यह स्पष्ट था कि शैतान ने जो विभिन्न ज़हर मेरे मन में बिठाये थे, वे मेरी अस्थि-मज्जा में गहरी जड़ें बना चुके थे और मेरा जीवन बन चुके थे। मेरे दिल में केवल वही करने की चाह थी जो मेरे अपने फायदे के लिए हो, अगर कुछ भी ऐसा होता जो सीधे ही मेरे लिए लाभदायक था, तो मैं अपने विवेक और सत्य के खिलाफ़ जाकर लोगों से झूठ बोलने लग जाती थी। इन सभी कार्यों और व्यवहारों के कारण मैं वास्तव में परमेश्वर के लिए घृणास्पद बनी, और यह देखना आसान था कि जीने के लिए शैतान के नियम सत्य के सीधे विरोध में थे, वे सच्चाई का विरोध करते थे, और वे परमेश्वर का विरोध करते थे। परमेश्वर ने मुझसे निपटने और मुझे अनुशासित करने लिए इस तरह की परिस्थिति को खड़ा किया था ताकि मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदल सकूँ, अपने झूठ बोलने और धोखा देने वाले तरीकों से छुटकारा पा सकूँ, एक ईमानदार व्यक्ति की तरह जीने में सक्षम हो सकूँ, तथा जीवित रहने के लिए शैतान के बनाये जीवन के नियमों पर अब और भरोसा न रखूँ। उसने मेरे सुन्न दिल को जगा दिया और मुझे शैतान द्वारा भ्रष्ट मेरी अपनी कुरूपता को स्पष्ट रूप से देखने के योग्य बनाया। उसने मुझे अपने अहम् का तिरस्कार करने और उसके पास लौट जाने में समर्थ बनाया। परमेश्वर सचमुच धार्मिक और पवित्र है! परमेश्वर विश्वसनीय है। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है, और वह ईमानदार लोगों को आशीर्वाद देता है। केवल एक ईमानदार व्यक्ति होने की खोज करके ही हम परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं। एक बार जब मैं परमेश्वर के इरादे को समझ गई तो मैंने एक संकल्प करने के लिए उससे प्रार्थना की: अब से आगे मैं लोगों को धोखा देने के लिए झूठ नहीं बोलूँगी, और अब से मैं अपने विवेक के खिलाफ़ जाने वाले काम नहीं करूँगी।
एक दिन एक ग्राहक ने फ़ोन पर कहा कि वह 900 युआन से अधिक के वी.सी. उत्पादों का एक डिब्बा चाहती थी, और मैंने उसे दुकान में आकर इसे ले जाने के लिए कहा। उसके आ पहुँचने के पहले तक मुझे एहसास नहीं हुआ कि हमारे पास वो उत्पाद मौजूद नहीं थे जो वह चाहती थी, लेकिन मैंने उससे वादा किया कि अगर वह कुछ दिनों तक प्रतीक्षा कर सके तो मैं उन उत्पादों को मँगाकर उन्हें भेज दूँगी। कुछ दिनों के बाद उसने मुझे उत्पादों के बारे में पूछने के लिए फिर से फ़ोन किया और मैंने मन ही मन सोचा: जब कोई ग्राहक उत्पादों के बारे में पूछताछ करता था तो मैं उन्हें हमेशा उन उत्पादों को बेच देती थी जो समाप्त होने वाले थे, लेकिन अब मैं लोगों को धोखा देने के लिए झूठ नहीं बोल सकती हूँ। लेकिन फिर मैंने मन में यह भी सोचा: अगर मैं इन उत्पादों को जल्दी से नहीं भेज पाती हूँ तो यह बहुत संभव है कि मैं एक ग्राहक को, साथ ही इस रकम को, खो दूँगी! तो मुझे क्या करना चाहिए? समाप्त होने वाले उत्पादों को भेजने का अर्थ धोखा देना होगा, और परमेश्वर खुश नहीं होगा। थोड़ी देर के लिए हिचकिचाने के बाद मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरा मार्गदर्शन करे, मुझे सच्चाई का अभ्यास करने में सक्षम बनाए, ताकि मैं ग्राहकों से अब और झूठ न बोलूँ। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के उस वचन के बारे में सोचा जहाँ कहा गया है: "तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर एक ईमानदार मनुष्य को पसंद करता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "तीन चेतावनियाँ")। "तुम जब भी कुछ करते या कहते हो, तो तुम्हें अपने हृदय को सही रखना, और धर्मी बनना चाहिए, और अपनी भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, या तुम्हारी अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करना चाहिए। ये ऐसे सिद्धांत हैं जिनमें परमेश्वर के विश्वासी स्वयं आचरण करते हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?")। परमेश्वर के वचनों के प्रकाश और मार्गदर्शन के तहत मैं परमेश्वर की माँगों को समझने लगी। वह यह उम्मीद करता है कि मैं सच्चाई का अभ्यास करूँ और एक ईमानदार व्यक्ति बन सकूँ, जो वह सिद्धांत है जिसे अपने व्यवहार में मुझे बनाए रखना होगा। मैं परमेश्वर को मेरे बाजु में, मेरी हर गतिविधि की जाँच करते हुए, महसूस कर सकती हूँ, और इस बार मैं फिर से परमेश्वर को निराश नहीं करूँगी, मुझे इस ग्राहक को सच बताना ही होगा। इसलिए, मैंने ग्राहक को फ़ोन किया: "जिन वी.सी. उत्पादों को आप चाहती हैं, वे अभी तक नहीं पहुंचे हैं, अगर आपको फ़ौरन इनकी ज़रूरत है तो मेरे पास घर पर वी.सी. का एक डिब्बा है जिसकी समय-सीमा जल्द ही समाप्त हो जाएगी, मैं आपको यह रियायती क़ीमत पर दे सकती हूँ, अगर आप उन्हें खरीदना चाहें तो कल उन्हें लेने के लिए आप दुकान में आ सकती हैं।" अगले दिन वह ग्राहक उत्पादों को ले जाने के लिए आई, और उसने उन्हें कुछ भी कहे बिना ले लिया। चूँकि मैंने अपने देह को धोखा देकर सच बोला था, मैंने अपने दिल में शांति का और चिंता से मुक्ति का अनुभव किया। इस घटना से गुज़रने के बाद मैं अपने दिल में द्रवित हो गई, मैंने देखा कि यदि मैं परमेश्वर के वचन के अनुसार आचरण करती हूँ, तथ्यों के अनुसार ग्राहकों को सच-सच बताती हूँ, और खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करती हूँ, तो मैं वास्तव में खुश रह सकती हूँ, केवल तभी मैं सच्ची मुक्ति और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकती हूँ! परमेश्वर को धन्यवाद हो!
इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचन को पढ़ा जहाँ कहा गया है: "एक सामान्य इंसान की तरह व्यवहार करना सुसंगति से बोलना है। हाँ का अर्थ हाँ, नहीं का अर्थ नहीं है। तथ्यों के प्रति सच्चे रहें और उचित तरीके से बोलें। कपट मत करो, झूठ मत बोलो" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "क्षमता को सुधारने का प्रयोजन परमेश्वर द्वारा उद्धार प्राप्त करना है")। मैंने ऊपर की सहभागिता को भी पढ़ा, जिसमें कहा गया था: "खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करने के तीन सिद्धांत हैं: एक, आपको एक नेक व्यक्ति होना चाहिए; दो, चालाकियों का सहारा न लो; तीन, विश्वासघाती मत बनो। यदि तुम इन तीन चीज़ों को करते हो तो तुम एक ईमानदार व्यक्ति बनोगे। एक नेक व्यक्ति होने का अर्थ सीधा और ईमानदार होना, और ईमानदारी से बोलना और नेकी से कार्य करना है, जहाँ एक का मतलब एक और दो का मतलब दो होता है" (ऊपर से सहभागिता में से)। परमेश्वर के वचन और मनुष्य की सहभागिता ने मुझे एक ईमानदार व्यक्ति बनने का मार्ग दिखाया। चाहे यह हमारे दैनिक जीवन में हो या हमारे कर्म-क्षेत्र में, या जब हम अन्य लोगों के साथ मिल रहे हों, हमें हमेशा वही कहना होगा जो हमारा तात्पर्य है और हमारी सोच और हमारे कर्म में समानता हो, हम दूसरों को धोखा न दें, झूठ न बोलें, और हमारे लिए एक का मतलब एक हो और दो का मतलब दो। ये वो चीजें हैं जिनकी परमेश्वर सामान्य मानवता वाले लोगों से माँग करता है। इसलिए मैंने उसी समय और वहीं पर एक संकल्प किया, चाहे मैं भाइयों या बहनों के साथ हूँ या मेरे ग्राहकों की उपस्थिति में रहूँ, मुझे अब से परमेश्वर के वचन पर भरोसा करके जीना है, एक सीधे और ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करना है और परमेश्वर के अवलोकन को स्वीकार करना है।
एक दिन मेरा सामना एक ग्राहक से हुआ और उसने मुझसे कहा: "मिस वू, मेरी त्वचा बहुत ख़ुश्क है, कुछ समय से मैं जिन उत्पादों का उपयोग कर रही हूँ, उनसे कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ा है, मैंने सुना है कि आप जिन उत्पादों को देती हैं, वे त्वचा में सुधार लाने के लिए बेहतर हैं, क्या आप मुझे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का एक सेट दे सकती हैं? दाम का कोई मुद्दा नहीं है।" जब मैंने उसे यह कहते सुना तो मैंने मन ही मन सोचा: 4,000-5,000 युआन की कीमत वाले उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का एक सेट मुझे 1,000 युआन से अधिक का लाभ दे सकता है, लेकिन यदि मैं उसकी त्वचा के लिए उपयुक्त उत्पादों का एक सेट बनाती हूँ तो उसकी क़ीमत केवल 1000 युआन के आसपास होगी, और मुझे सिर्फ 400 युआन के करीब मुनाफ़ा होगा। ठीक तभी जब मैं तय नहीं कर पा रही थी कि मुझे क्या चुनना चाहिए, मैंने परमेश्वर के वचन के बारे में सोचा जहाँ यह कहा गया है: "आज, तू परमेश्वर को संतुष्ट करने के योग्य है, जिसमें तू छोटी से छोटी बात पर ध्यान रखता है, तू सभी बातों में परमेश्वर को संतुष्ट करता है, तेरे पास परमेश्वर को सच्चाई से प्रेम करने वाला हृदय है, तू अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को देता है और हालांकि कुछ ऐसी बातें हैं जो तू नहीं समझ सकता है, तू अपनी प्रेरणाओं को सुधारने, और परमेश्वर की इच्छा को खोजने के लिए परमेश्वर के सामने आ सकता है, और तू वह सब कुछ करता है जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए आवश्यक है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है")। "मैं धर्मी हूँ, मैं वफ़ादार हूँ, मैं परमेश्वर हूँ जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है! मैं फ़ौरन इसे प्रकट कर दूँगा कि कौन सच्चा और कौन झूठा है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "चवालीसवाँ कथन")। ये सही है! परमेश्वर एक धर्मी और विश्वसनीय परमेश्वर है, वह एक ऐसा परमेश्वर भी है जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है। मुझे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए, अब मैं ऐसी चीजें नहीं कर सकती जो मेरे हितों की रक्षा के लिए परमेश्वर के नाम को तिरस्कृत करती हैं। इसलिए, मैंने उससे कहा: "उच्चतम गुणवत्ता वाले उत्पाद आपकी त्वचा के लिए उपयुक्त नहीं हैं, वे इसमें और अधिक बोझ डाल देंगे, वह सेट जो आपकी त्वचा के लिए सबसे उपयुक्त है, और जिसकी मैं सिफ़ारिश करती हूँ, वह केवल 1000 युआन से कुछ अधिक है, यह आपकी त्वचा की नींव से मरम्मत करना शुरू कर देगा, जो धीरे-धीरे आपकी त्वचा को बेहतर बना देगा।" इस तरह से पेश आने पर मेरे मन ने बहुत अधिक सहज महसूस किया। ग्राहक ने मुझसे कहा: "मिस वू, आप इतनी अच्छी हैं, आप ने जो कहा वह बहुत नेक है, मैं अन्य ग्राहकों का आपसे परिचय करा दूँगी कि वे आएँ और आपके उत्पादों का उपयोग करें।" मैं मुस्कुराई और बोली: "ऐसा नहीं है कि मैं अच्छी व्यक्ति हूँ, बात सिर्फ इतनी है कि हमें ईमानदार लोगों के रूप में कार्य करना चाहिए, केवल तभी हमें मन की शांति मिलेगीi।" कुछ ही समय में वह ग्राहक उन उत्पादों को खरीदने के लिए लौट आई, और मुझसे परिचय कराने के लिए वह अपने साथ कुछ दोस्तों को भी लाई, और मैंने उनके सामने वो उत्पाद पेश किये जो उनकी त्वचा के लिए उपयुक्त थे। धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, अधिकांश ग्राहकों ने मुझ पर अधिक से अधिक भरोसा रखा, उन सभी ने उनके लिए उत्पादों को हासिल करने के लिए मुझे नकद रकम दी, जिससे इन लेनदेन के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था करने का मुझ पर कोई दबाव नहीं हुआ। इस तरह मैंने खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश किया, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो वास्तव में परमेश्वर की माँगों के अनुसार कार्य कर सके, और मेरा व्यापार लगातार बेहतर होता गया। मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का आशीर्वाद था, न केवल परमेश्वर ने मुझे भौतिक चीज़ों को प्रदान किया, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसने मुझे यह भी सिखाया कि मुझे कैसा आचरण करना है। वास्तविक दुनिया में, परमेश्वर के वचन के अनुसार स्वयं एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में बर्ताव करना वाकई बड़ी बात है!
मैंने वापस अपने अतीत पर सोचा, किस तरह अपने व्यक्तिगत हितों के लिए मैंने शैतान की बुरी रुझानों का अनुसरण किया और शैतान के जीवन दर्शन का इस तरह से पालन किया जहाँ "मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में चतुराईपूर्ण जुबान होना बेहतर है" ("मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में एक चतुराईपूर्ण ज़ुबान का होना बेहतर है")। मैंने सोचा था कि झूठ बोले बिना मैं काम नहीं चला सकती थी, कि झूठ बोले बिना मैं बहुत धन नहीं कमा सकती थी, और नतीजतन मैं शैतान का उस हद तक खिलौना बन गई जहाँ मैं न तो एक मानव रही न ही एक जानवर! मैं निरंतर एक मानवता-विहीन व्यक्ति में, एक ऐसे व्यक्ति में जिसमें न तो जमीर था न ही तर्कपूर्ण विवेक, परिवर्तित होती गई, मैंने वो ईमानदारी और गरिमा खो दी थी जिसे स्वयं को पेश करते समय किसी व्यक्ति में होनी चाहिए। परमेश्वर मुझसे प्रसन्न नहीं था, एक व्यक्ति के रूप में मैं भरोसेमंद नहीं थी, प्रतिदिन मैं एक चोर की तरह व्यवहार कर रही थी, और इस डर में रहती थी कि किसी भी दिन मैं परेशानी में पड़ सकती हूँ और किसी मुकदमे में फँस सकती हूँ। मेरा जीवन बहुत तनावपूर्ण और थकाऊ था। परन्तु परमेश्वर जानता था कि मैं शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हो गई थी, और मुझे बचाने के लिए उसने मुझे ऐसे माहौल में रखा जो मुझे अनुशासित करे, साथ ही उसने मेरा नेतृत्व और मार्गदर्शन करने के लिए वचन दिए, ताकि मैं अपनी भ्रष्टता की कुरूपता को स्पष्ट रूप से देख सकूँ, ताकि मैं खुद को तुच्छ जान सकूँ और उसकी ओर मुड़ सकूँ, और एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में सच्चाई का अभ्यास कर सकूँ। जब मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार काम किया, जब मैंने खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश किया, जब मैंने अपना व्यवसाय करते समय अपनी भूमिका निभाई, तो मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिला। इस अनुभव में मैंने देखा कि मुझे बचाने और जीवन के सही मार्ग पर लाने का यह इरादा परमेश्वर का था, ताकि मैं शैतान के हाथ का खिलौना न बनी रहूँ। मैं अपने तहेदिल से ऐसे प्यार और उद्धार के लिए आभारी हूँ जो परमेश्वर ने मुझे दिया है। अब इस बिंदु से आगे, मैं निश्चित रूप से परमेश्वर के वचन के अनुसार स्वयं को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करुँगी, परमेश्वर को संतुष्ट करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए एक सच्चे व्यक्ति के रूप में जीऊँगी!

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एक ईमानदार व्यक्ति होना वास्तव में बड़ी बात है!

एक ईमानदार व्यक्ति होना वास्तव में बड़ी बात है!
वू मिंग, चीन
2004 में एक सहेली ने एक दिन मुझसे कहा: “हर दिन तुम जल्दी उठती हो और दिन भर कपड़े काटने में व्यस्त रहती हो, तुम खुद को थका देती हो, फिर भी तुम धन अर्जित नहीं कर पाती हो। आज का समाज पैसे कमाने के लिए जीभ पर निर्भर करता है, जैसा कि इस लोकप्रिय कहावत में कहा गया है: ‘मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में एक चतुराईपूर्ण ज़ुबान का होना बेहतर है।’ तुम जानती हो कि अब मैं प्रत्यक्ष बिक्री व्यवसाय में सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों को बेच रही हूँ, न केवल यह मुझे सुंदर बनाता है, मुझे हर दिन बहुत अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है, बहुत सारे पैसे कमाने के लिए मुझे बस अपने ग्राहकों से कुछ बातें करनी होती हैं और अपने उत्पादों को बेचना होता है। तुम अपना काम बदलकर मेरे साथ सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों को बेचने क्यों नहीं आ जाती हो?” मैंने अपनी सहेली को देखा, वह वास्तव में पहले से कहीं अधिक सुंदर थी, और फिर मैंने सोचा कि किस तरह मैं 10 साल से अधिक समय के लिए बस कपड़े बनाये जा रही थी, कैसे मैं वास्तव में इस काम में कोई धन अर्जित नहीं कर पाई थी, और कैसे अब मैं जवान तो हो नहीं रही थी। अगर यह वास्तव में ऐसा ही था जैसा कि मेरी सहेली बता रही थी, अगर अपना काम बदल कर प्रसाधन उत्पादों को बेचकर मैं आसानी से धन अर्जित कर सकती थी, और यहाँ तक कि मैं अधिक युवा और सुन्दर भी लग सकती थी और दूसरों से बड़ी प्रशंसा भी पा सकती थी, तो वह तो बहुत बेहतर होगा! जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मैंने उसे बिलकुल वहीं कह दिया कि मैं उस कंपनी का एक हिस्सा बनने के लिए तैयार थी। बाद में, एक निरीक्षण के बाद, मैंने 3,000 युआन मूल्य के उत्पादों को खरीद लिया, और मैंने इस कंपनी के लिए सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में एक सौंदर्य सलाहकार के रूप में अपना काम शुरू कर दिया।
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एक सहकर्मी ने मुझे बताया कि सौंदर्य सलाहकार बनने के बाद, यदि हम 8 से 12 अन्य सौंदर्य सलाहकारों को विकसित कर सकते हैं, तो हमें विक्रेता के रूप में काम करने के लिए पदोन्नत किया जा सकता है। लेकिन अगर हम एक विक्रेता बनना चाहते हैं तो हमारे पास अच्छे कार्य-संपादन की स्थिति के रूप में उत्पादों का ऑर्डर देने वाले अधिक ग्राहक होने चाहिए। इसके बाद, मैंने अपने कार्य-संपादन को बढ़ाने के तरीकों के बारे में सोचते हुए अपने दिमाग को झकझोरना शुरू कर दिया। मैंने अन्य लोगों से सलाह ली, और विक्रय की विधियों का अध्ययन किया; हमारे उत्पादों को आज़माने के लिए हमारी दुकान में अक्सर ग्राहकों को आमंत्रित किया, और जिन उत्पादों को मैंने दिखाया था उन्हें खरीदने के लिए उन्हें मनाया; जब भी मेरे पास समय होता, तो मैं अपने आपको व्यक्त करते समय अपने बोलने के स्तर को बढ़ाने के लिए दर्पण के सामने बोलने का अभ्यास करती थी, ताकि मैं ग्राहकों से बेहतर बातचीत कर सकूँ। मेरी लगातार कड़ी मेहनत से मुझे धीरे-धीरे अधिक ग्राहक मिले। अपने ग्राहक-आधार को दृढ बनाने के लिए, मुझे कंपनी में विक्रय की प्रचारक गतिविधियों का साथ देना पड़ा था और हमारी कार्यशालाओं में भाग लेने के लिए ग्राहकों को आमंत्रित करने हेतु उन्हें फोन करना पड़ता था, जहाँ वे हमारे उत्पादों की प्रभावशीलता का अनुभव कर सकते थे, और साथ ही मैं कंपनी के उत्पादों और हमारी पुरस्कार प्रणाली, विक्रय प्रचार, आदि को पेश कर सकती थी, जिससे ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके। मैं अक्सर एक घंटे से अधिक समय तक बोलती रहती, और तब तक नहीं रूकती थी जब तक कि ग्राहक उन उत्पादों को खरीदने हेतु पर्याप्त रूप से संतुष्ट न हो जाएँ। अपने हाथों में इतनी आसानी से अर्जित पैसों को देखकर मुझे बहुत ख़ुशी महसूस होती थी: पैसे कमाने के लिए मेरे मुंह पर निर्भर करना वास्तव में मेरे पिछले नेक शारीरिक श्रम से पैसा अर्जित करने की तुलना में बहुत अधिक सहज था, और मैंने यह सोचा कि यदि मैं कड़ी मेहनत करना जारी रखती हूँ, तो विक्रेता बन पाना मेरे लिए बिलकुल करीब ही था।
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एक बार अपने चेहरे पर मुंहासे लिए एक लड़की हमारी दुकान में आई, और मैंने मन ही मन सोचा: यह एक मौक़ा है, मुझे इस लड़की को सुंदर दिखने की ज़रूरत महसूस करानी होगी और उसे कुछ उच्च लाभ वाले उत्पादों की सिफारिश करनी होगी, इस तरह न केवल मैं बहुत पैसे कमा सकती हूँ, बल्कि मैं उसे अपने एक दीर्घकालिक ग्राहक में बदल सकती हूँ, और सही समय पर मैं उसे और भी अधिक ग्राहकों को लाने के लिए प्रेरित करुँगी, जिससे उत्पादों की मेरी बिक्री में वृद्धि होगी, और उसके कारण स्वाभाविक रूप से मेरे कार्य-संपादन में तरक्की होगी। मैंने देखा कि उसके चेहरे पर मुंहासे उतने गंभीर नहीं थे, लेकिन बड़ा मुनाफा पाने के लिए, मैंने एक अतिरंजित स्वर में कहा: “ओह! अगर हम तुरंत आपके चेहरे के मुंहासों का इलाज नहीं करते हैं तो वे बढ़कर आपकी त्वचा में गहरे हो जाएँगे और नुकसान पहुंचाएँगे, और तब ऐसे कोई उत्पाद नहीं होंगे जो इसे ठीक कर सकें, और यह बात भविष्य में आपके चेहरे की त्वचा को भी प्रभावित करेगी। यह इतना गंभीर हो सकता है कि आपका चेहरा उबड़खाबड़ हो जाएगा और मुंहासों से ढँक जाएगा। न केवल यह आपकी सूरत को प्रभावित करेगा, इसका आपके भविष्य पर भी असर पड़ेगा, और यह एक समस्या होगी!” जब लड़की ने यह सुना, तो वह बहुत ही घबरा गई और उसने तुरंत चाहा कि मैं उसे कोई भी ऐसे उत्पाद दे दूँ जो उसकी मदद कर सके। इसलिए मैंने मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए, उसे दिखाने के लिए तुरंत कुछ उत्पाद निकाले, और वह 1,000 युआन के उत्पादों को लेकर गई। मैंने मन ही मन सोचा: ऐसा लगता है कि अगर मैं पैसे बनाना चाहती हूँ तो मैं बहुत ईमानदार नहीं हो सकती, और मुझे एक ग्राहक की कमज़ोरियों को लेकर उन्हें उनकी ही प्राथमिकताओं के आधार पर अतिरंजित करना होगा, क्योंकि यही वह है जो उन्हें हमारे उत्पादों को खरीदने के लिए तैयार करता है। इसके बाद, अपने उत्पादों को बेचने के लिए मैंने विभिन्न प्रकार के ग्राहकों पर विभिन्न तरीक़ों का उपयोग करना सीख लिया, और परिणामस्वरूप कंपनी में मेरा कार्य-संपादन अधिकाधिक बढ़ने लगा।
मैंने चार साल तक कड़ी मेहनत की, और अंत में विक्रेता के स्तर पर पदोन्नत हुई, लेकिन इस स्थिति को बनाये रखना आसान नहीं था। कंपनी के अलिखित नियमों के अनुसार: हमारा कार्य-संपादन पूरी तरह से ऑर्डर पर आधारित होता है, हमारी उपलब्धि जितनी अधिक होगी, हमारी आय उतनी ही अधिक होगी, और हमारा ओहदा जितना ही ऊँचा होगा, उतने ही अधिक पुरस्कार हमें मिलेंगे। इन लक्ष्यों तक पहुँचने और विक्रेताओं के रूप में हमारे कार्य-संपादन को पूरा करने की ओर सौंदर्य सलाहकारों को उत्पादों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, हमने एक पुरस्कार विधि का उपयोग किया। कभी-कभी, जब सौंदर्य सलाहकार खरीद नहीं करते थे, हमें उत्पादों को खरीदने के लिए अपने धन का उपयोग करना पड़ता थे ताकि हम अपने कार्य-संपादन में योग्य बने रह सकें। यह हमारे पास कई उत्पादों की भरमार कर देता था, और एक लंबी अवधि तक न बेचे जाने के बाद, इन उत्पादों की समयसीमा समाप्त होने लगती थी। हमारे कार्य-संपादन को बनाए रखने के लिए, हम इन जल्द से जल्द गतावाधिक या एक्सपायर होने वाले उत्पादों को बेचने के लिए ग्राहकों को छूट दिया करते थे। एक बार, मेरे एक सहयोगी ने एक ग्राहक को एक ऐसा उत्पाद बेच दिया जो समाप्त होने वाला था, और बाद में ग्राहक का चेहरा खिलते फूल की तरह सूज कर लाल हो गया। इससे ग्राहक को नाराज़गी हुई और वे मेरे सहयोगी से निपटने के लिए उसे ढूँढते हुए आ पहुँचे, मेरे सहयोगी को इतना डर हुआ कि उन्हें यही पता न था कि अब क्या किया जाए। अंत में, इस पर बातचीत करने के बाद, उन्होंने ग्राहक को कुछ क्षतिपूर्ति दी और इस मुसीबत को हल किया गया। जब ऐसा हुआ, तो मैंने सोचा कि प्रत्येक महीने, अपने कार्य-संपादन को पूरा करने के लिए, मैं भी अधिक मात्रा में संचित उन उत्पादों को बेचूँगी जो गतावाधिक होने वाले थे, और इन जल्द ही समाप्त होने वाले उत्पादों के लिए कंपनी की ओर से कोई गारंटी नहीं थी, इसलिए यदि संयोग से कोई ग्राहक इन उत्पादों में से किसी एक का उपयोग करने के बाद त्वचा की समस्या विकसित करे और मुझ पर मुकदमा दायर करने की इच्छा से आए, तो मुझे क्या करना होगा? इससे मुझे लगातार अधिक असहज महसूस हुआ, इससे मैं इतना डर गई कि मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, और मैंने अपने आप से कहा कि अब से मैं उन उत्पादों को नहीं बेचूँगी जिनकी कालावधि समाप्त होने वाली थी। लेकिन फिर मैंने इसके बारे में कुछ आगे सोचा: यदि मैं सभी उत्पादों को नहीं बेच डालती हूँ तो मेरा कार्य-संपादन पूरा नहीं होगा, और फिर मेरे पास विक्रेता होने की योग्यता नहीं रहेगी, और इससे पहले कि मैं इसे जान भी सकूँ, मुझे एक साधारण सौंदर्य सलाहकार बन जाने को पदावनत कर दिया जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि अमीर होने के जिस सपने को पूरा करने के लिए मैंने काम किया था, वह एक असंभावी योजना बनकर रह जाएगी, और इतने सारे वर्षों की मेरी कड़ी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी! जब मैंने अतीत और भविष्य के बारे में सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि विक्रेता होने की मेरी योग्यता को बनाये रखने के लिए, मैं इसे कुछ ख़ास बदल नहीं पाऊँगी। अगर दूसरे लोग ऐसा कर सकते थे तो मैं क्यों नहीं? तो, मैं इस अलिखित व्यावसायिक नियम के साथ चलती रही।
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2012 में मेरे एक मित्र ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के लिए प्रेरित किया, और तब से मैंने अक्सर परमेश्वर के वचन को पढ़ा है, परमेश्वर से प्रार्थना की है और भाइयों और बहनों के साथ मिलकर सहभागिता की है। सहभागिता के दौरान, सभी भाई-बहन खुलकर दिल की बात करते हैं, और अपनी जानकारी और परमेश्वर के वचन के बारे में अपने अनुभव पर वार्तालाप करते है, और मुझे वास्तव में उनकी बातें सुनकर आनंद मिलता है। एक दिन, मैंने परमेश्वर के इस वचन को पढ़ा: “तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर एक ईमानदार मनुष्य को पसंद करता है। परमेश्वर के पास निष्ठा का सार है, और इसलिए उसके वचन पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, उसका कार्य दोषरहित और निर्विवाद है। यही कारण है कि क्यों परमेश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके साथ पूरी तरह से ईमानदार हैं” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “तीन चेतावनियाँ”)। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मैंने पाया कि परमेश्वर वफ़ादार है और वह ईमानदार लोगों को पसंद करता है। परमेश्वर चाहता है कि हम सभी भी ईमानदार व्यक्ति बनें, झूठ न बोलें, दूसरों को धोखा न दें। मैंने उन सभी बेईमान शब्दों के बारे में सोचा जिनका इस्तेमाल मैंने व्यवसाय करने और मुनाफ़ा कमाने की कोशिश में ग्राहकों को धोखा देने के लिए हर दिन किया था, वह मुनाफ़ा जिसे मैंने अपने ग्राहकों के विश्वास के साथ धोखा कर के प्राप्त किया था। मैंने पैसे कमाने के लिए बेईमान तरीक़ों का इस्तेमाल किया था। ये सभी बातें बेईमानी की अभिव्यक्तियाँ थीं। अगर मैं इसी राह पर चलती रही, तो परमेश्वर मुझसे कैसे प्रेम कर सकता था? अब मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, मुझे अपने भाइयों और बहनों की तरह होना चाहिए और एक ईमानदार व्यक्ति होने का और सच बोलने का अभ्यास करना चाहिए। इसी तरह मैं परमेश्वर को खुश करने और उसकी मंजूरी प्राप्त करने में सक्षम हो सकूँगी।
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लेकिन वास्तविक जीवन में, लाभ का सामना करते समय, एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करना उतना आसान नहीं था जितना कि मैंने कल्पना की थी कि यह होगा। एक दिन एक ग्राहक मेरे पास 7,000 युआन के सौन्दर्य प्रसाधन उत्पादों की सूची लेकर आई जिन्हें वह खरीदना चाहती थी। मैंने सूची को देखा और पाया कि हमारे स्टोर में वे सभी उत्पाद मौजूद नहीं थे, इसलिए मैं सोचने लगी कि मुझे क्या करना चाहिए। क्या मुझे उसे सच्चाई बता देनी चाहिए, या … मुझे अपने दिल में एक तीव्र संघर्ष महसूस हुआ: अब मैं परमेश्वर में विश्वास करने लगी हूँ, झूठ बोलना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, मैं अब लोगों को पहले की तरह धोखा नहीं दे सकती हूँ; लेकिन अगर मैं इस ग्राहक को सच बता देती हूँ तो ज़ाहिर है कि मैं इस समय उसके साथ सौदा नहीं कर पाऊँगी, और शायद वह अगली बार वापस नहीं आएगी, जिसका अर्थ यह होगा कि उससे पैसे कमाने का अवसर अब नहीं रहेगा। हाय, झूठ बोलना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, लेकिन झूठ नहीं बोलना दो हज़ार युआन से अधिक मुनाफ़े को खोने के समान है जो मेरे हाथों में आने वाला था, जिस के बारे में अगर मेरे सहकर्मियों ने जाना, तो वे निश्चित रूप से मुझ पर हँसेंगे, इसलिए इस बार तो मैं (चालाकी) कर सकती हूँ, और अगली बार मैं ऐसा नहीं करूँगी। तो मैं ग्राहक के पास गई और मैंने उससे कहा: “मैं एक त्वचा-विशेषज्ञ हूँ, अगर आप मेरी सलाह मानेंगी और उन उत्पादों का उपयोग करेंगी जिनकी मैं सिफ़ारिश करती हूँ तो मैं गारंटी देती हूँ कि आपकी त्वचा बेहतर हो जाएगी।” मैंने अपनी वाकपटुता पर भरोसा किया, ग्राहक से एक घंटे से अधिक बात की, जब तक वह अंततः उन उत्पादों को खरीदने के इच्छुक न हो गई जिनकी मैंने सिफ़ारिश की थी। तो मैंने उसे देने के लिए 7,000 युआन मूल्य के उच्च श्रेणी के उत्पादों का एक यादृच्छ संग्रह इकट्ठा किया। उसके जाने के बाद मैंने अपने हाथों में उस रकम की ओर देखा लेकिन मुझे ज़रा भी ख़ुशी महसूस नहीं हुई। बल्कि मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई क्योंकि मैंने एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास नहीं किया था जिसकी परमेश्वर को अपेक्षा है। कई दिनों के बाद ग्राहक ने मुझे अचानक फोन किया और उन उत्पादों को वापस करना चाहा। उसने कहा कि जो उत्पाद मैंने उसे दिए थे, उनका उपयोग करके उसे सहज नहीं लग रहा था। मैंने उसे मनाने के लिए वो हर कोशिश की जो मैं कर सकती थी, लेकिन उसका दिमाग नहीं बदला जा सका। इस घटना के बाद, एक के बाद दूसरे ग्राहक ने अपने उत्पादों को वापस करना चाहा। जैसे जैसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का यह सिलसिला मेरे साथ होने लगा, मैंने इन बातों पर चिंतन करना शुरू कर दिया: खुद को लाभ पहुंचाने के लिए मैंने हमेशा इन उत्पादों को अपने ग्राहकों को धोखे से बेचने के लिए, कपटपूर्ण बातों का उपयोग किया है। यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है, लेकिन विक्रेता के रूप में अपनी योग्यता को बनाये रखने के लिए मैंने इसे किया है। सच्चाई के बारे में पूरी तरह से जागरूक होने पर भी मैं जानबूझकर इसके विपरीत गई और अपना धंधा करने के लिए मैंने धोखाधड़ी के तरीकों का उपयोग जारी रखा। परमेश्वर शुद्ध और पवित्र है, वह मुझे एक बात कहने तथा कुछ और करने की अनुमति कैसे दे सकता है? हाल में जो ये घटनाएँ हुईं, उनके लिए केवल मैं खुद ही दोषी थी, मैंने जो फसल बोयी थी, वही मैं काट रही थी। यह परमेश्वर का निपटना और अनुशासन था, और परमेश्वर मुझे बचा रहा था। लेकिन मेरे सामने मुनाफ़े को देखकर मुझे समझ में नहीं आता था कि क्यों मैं परमेश्वर के वचन के अनुसार कार्य करना चाहती तो थी, लेकिन कर नहीं पाती थी। मैं परमेश्वर के सामने बस प्रार्थना कर सकती थी और खोज कर सकती थी।
बाद में, मैंने परमेश्वर के उस वचन को पढ़ा जहाँ यह कहा गया है: “जब एक बार मनुष्य को ऐसे धोखे से दूषित कर दिया जाता है, तो वह उस व्यक्ति के समान होता है जो जुए में शामिल होता है और फिर एक जुआरी बन जाता है। अनभिज्ञता में, वह अपने धोखाधड़ी के व्यवहार को मंजूरी देता है और उसे स्वीकार कर लेता है। अनभिज्ञता में, वह धोखाधड़ी को जायज़ व्यावसायिक व्यवहार मान लेता है, और धोखाधड़ी को अपने ज़िन्दा बचे रहने के लिए और अपने जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी माध्यम मान लेता है; वह सोचता है कि ऐसा करने के द्वारा वह जल्दी से धनी बन सकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत में लोग इस प्रकार के व्यवहार को स्वीकार नहीं करते हैं, जब तक वे व्यक्तिगत रीति से एवं प्रत्यक्ष रूप से इसकी कोशिश नहीं करते हैं और अपने स्वयं के तरीके से इसके साथ प्रयोग नहीं कर लेते हैं, वे इस व्यवहार को और इस रीति से कार्यों को अंजाम देने को नीची दृष्टि से देखते हैं, और तब उनका हृदय धीरे धीरे रूपान्तरित होना शुरू होता है। अतः यह रूपान्तरण क्या है? यह इस प्रवृत्ति (प्रचलन) की मंजूरी एवं स्वीकृति है, इस प्रकार के विचार की स्वीकृति एवं मंजूरी जिसे तुम्हारी सामाजिक प्रवृत्ति के द्वारा तुम्हारे भीतर डाला गया है। अनभिज्ञता में, तुम महसूस करते हो कि यदि तुम व्यवसाय में धोखा नहीं देते हो तो तुम हानि उठाओगे, यह कि यदि तुम धोखा नहीं देते हो तो तुम किसी चीज़ को खो चुके होगे। अनजाने में, यह धोखाधड़ी तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा मुख्य आधार बन जाती है, और साथ ही एक प्रकार का व्यवहार भी बन जाती है जो तुम्हारे जीवन के लिए एक ज़रूरी नियम है। जब मनुष्य इस प्रकार के व्यवहार एवं ऐसी सोच को स्वीकार कर लेता है उसके बाद, क्या मनुष्य का हृदय किसी परिवर्तन से होकर गुज़रता है? तुम्हारा हृदय बदल गया है, अतः क्या तुम्हारी ईमानदारी बदल गई है? क्या तुम्हारी मानवता बदल गई है? (हाँ।) अतः क्या तुम्हारा विवेक बदल गया है? (हाँ।) मनुष्य की सम्पूर्णता एक गुणात्मक परिवर्तन से होकर गुज़रती है, उनके हृदय से लेकर उनके विचारों तक, उस हद तक कि वे भीतर से लेकर बाहर तक बदल जाते हैं। यह परिवर्तन तुम्हें परमेश्वर से दूर और दूर रखता है, तथा तुम और भी अधिक शैतान के अनुरूप, तथा और भी अधिक उसके समान होते जाते हो” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “स्वयं परमेश्वर, अद्वितीय VI”)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल की उलझन को उजागर कर दिया, मुझे समझ में आ गया कि अपने मुनाफ़े को मेरे सामने रखकर मैं परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में नहीं ढाल सकती थी, मैं उस ईमानदार व्यक्ति की तरह नहीं जी सकती थी जिसकी परमेश्वर को अपेक्षा है, और इनका कारण यह था कि मैं समाज की बुरी रुझानों से गहराई से भ्रष्ट हो गई थी और मैं जीने के लिए शैतान के ज़हर पर निर्भर करती थी। “मैं तो बस अपने लिए सोचूँगी, बाक़ियों को शैतान ले जाए।” “मनुष्य अमीर बनने के लिए कुछ भी करेगा।” “जैसे एक छोटा दिमाग़ कोई सज्जन व्यक्ति नहीं बनता, एक असली आदमी बिना ज़हर के नहीं होता है।” शैतान के ये ज़हर पहले से ही मेरे भीतर गहरी जड़ें बना चुके थे, जिसकी वजह से पूरी तरह से जागरूक होने के बावजूद मैं सच्चाई का अभ्यास करने में असमर्थ थी और जब एक सामान्य व्यक्ति होने की स्थिति आती थी, तो मैं सही और गलत का सहज विवेक खो बैठती थी, जिससे मैं परमेश्वर से निरंतर दूर होती गई थी। मैंने सोचा कि मैंने कैसे सब से ऊपर दौलत को मानने की सामाजिक प्रवृत्ति का अंधाधुंध पालन किया था, और मैंने कैसे मान लिया था कि ईमानदार होने और कष्ट सहने के लिए तैयार होना उतना अच्छा नहीं था जितना जल्दी से पैसे कमाने के लिए धोखाधड़ी के तरीकों का उपयोग करना, जिससे मुझे अपना काम बदलना पड़ा था और मैं सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पादों को बेचने लगी थी, जहाँ शुरू से ही मैंने शैतान के जीवन दर्शन का उस राह पर अनुसरण किया था जहाँ “मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में चतुराईपूर्ण जुबान होना बेहतर है।” अपना व्यवसाय करते समय मैंने अपनी वाकपटुता पर निर्भर किया, हमेशा मेरे ग्राहकों को धोखा देने के लिए कपटपूर्ण शब्दों का उपयोग किया, और अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए जो कुछ भी कहना पड़ा, सो कहती रही। मैंने खुद से कहा कि धोखाधड़ी का यह काम सर्व-सामान्य था, कि हर कोई ऐसा करता था, कि अगर मैं ऐसा न करूँ तो मैं घाटे में रहूँगी, और ऐसी सोच ने मुझे क्या करना चाहिए इसके विवेक की उपेक्षा करने के लिए, और सत्य को जानते हुए भी उसका अभ्यास न करने के लिए, प्रेरित किया। यह स्पष्ट था कि शैतान ने जो विभिन्न ज़हर मेरे मन में बिठाये थे, वे मेरी अस्थि-मज्जा में गहरी जड़ें बना चुके थे और मेरा जीवन बन चुके थे। मेरे दिल में केवल वही करने की चाह थी जो मेरे अपने फायदे के लिए हो, अगर कुछ भी ऐसा होता जो सीधे ही मेरे लिए लाभदायक था, तो मैं अपने विवेक और सत्य के खिलाफ़ जाकर लोगों से झूठ बोलने लग जाती थी। इन सभी कार्यों और व्यवहारों के कारण मैं वास्तव में परमेश्वर के लिए घृणास्पद बनी, और यह देखना आसान था कि जीने के लिए शैतान के नियम सत्य के सीधे विरोध में थे, वे सच्चाई का विरोध करते थे, और वे परमेश्वर का विरोध करते थे। परमेश्वर ने मुझसे निपटने और मुझे अनुशासित करने लिए इस तरह की परिस्थिति को खड़ा किया था ताकि मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदल सकूँ, अपने झूठ बोलने और धोखा देने वाले तरीकों से छुटकारा पा सकूँ, एक ईमानदार व्यक्ति की तरह जीने में सक्षम हो सकूँ, तथा जीवित रहने के लिए शैतान के बनाये जीवन के नियमों पर अब और भरोसा न रखूँ। उसने मेरे सुन्न दिल को जगा दिया और मुझे शैतान द्वारा भ्रष्ट मेरी अपनी कुरूपता को स्पष्ट रूप से देखने के योग्य बनाया। उसने मुझे अपने अहम् का तिरस्कार करने और उसके पास लौट जाने में समर्थ बनाया। परमेश्वर सचमुच धार्मिक और पवित्र है! परमेश्वर विश्वसनीय है। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है, और वह ईमानदार लोगों को आशीर्वाद देता है। केवल एक ईमानदार व्यक्ति होने की खोज करके ही हम परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं। एक बार जब मैं परमेश्वर के इरादे को समझ गई तो मैंने एक संकल्प करने के लिए उससे प्रार्थना की: अब से आगे मैं लोगों को धोखा देने के लिए झूठ नहीं बोलूँगी, और अब से मैं अपने विवेक के खिलाफ़ जाने वाले काम नहीं करूँगी।
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एक दिन एक ग्राहक ने फ़ोन पर कहा कि वह 900 युआन से अधिक के वी.सी. उत्पादों का एक डिब्बा चाहती थी, और मैंने उसे दुकान में आकर इसे ले जाने के लिए कहा। उसके आ पहुँचने के पहले तक मुझे एहसास नहीं हुआ कि हमारे पास वो उत्पाद मौजूद नहीं थे जो वह चाहती थी, लेकिन मैंने उससे वादा किया कि अगर वह कुछ दिनों तक प्रतीक्षा कर सके तो मैं उन उत्पादों को मँगाकर उन्हें भेज दूँगी। कुछ दिनों के बाद उसने मुझे उत्पादों के बारे में पूछने के लिए फिर से फ़ोन किया और मैंने मन ही मन सोचा: जब कोई ग्राहक उत्पादों के बारे में पूछताछ करता था तो मैं उन्हें हमेशा उन उत्पादों को बेच देती थी जो समाप्त होने वाले थे, लेकिन अब मैं लोगों को धोखा देने के लिए झूठ नहीं बोल सकती हूँ। लेकिन फिर मैंने मन में यह भी सोचा: अगर मैं इन उत्पादों को जल्दी से नहीं भेज पाती हूँ तो यह बहुत संभव है कि मैं एक ग्राहक को, साथ ही इस रकम को, खो दूँगी! तो मुझे क्या करना चाहिए? समाप्त होने वाले उत्पादों को भेजने का अर्थ धोखा देना होगा, और परमेश्वर खुश नहीं होगा। थोड़ी देर के लिए हिचकिचाने के बाद मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरा मार्गदर्शन करे, मुझे सच्चाई का अभ्यास करने में सक्षम बनाए, ताकि मैं ग्राहकों से अब और झूठ न बोलूँ। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के उस वचन के बारे में सोचा जहाँ कहा गया है: “तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर एक ईमानदार मनुष्य को पसंद करता है” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “तीन चेतावनियाँ”)। “तुम जब भी कुछ करते या कहते हो, तो तुम्हें अपने हृदय को सही रखना, और धर्मी बनना चाहिए, और अपनी भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, या तुम्हारी अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करना चाहिए। ये ऐसे सिद्धांत हैं जिनमें परमेश्वर के विश्वासी स्वयं आचरण करते हैं” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?”)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाश और मार्गदर्शन के तहत मैं परमेश्वर की माँगों को समझने लगी। वह यह उम्मीद करता है कि मैं सच्चाई का अभ्यास करूँ और एक ईमानदार व्यक्ति बन सकूँ, जो वह सिद्धांत है जिसे अपने व्यवहार में मुझे बनाए रखना होगा। मैं परमेश्वर को मेरे बाजु में, मेरी हर गतिविधि की जाँच करते हुए, महसूस कर सकती हूँ, और इस बार मैं फिर से परमेश्वर को निराश नहीं करूँगी, मुझे इस ग्राहक को सच बताना ही होगा। इसलिए, मैंने ग्राहक को फ़ोन किया: “जिन वी.सी. उत्पादों को आप चाहती हैं, वे अभी तक नहीं पहुंचे हैं, अगर आपको फ़ौरन इनकी ज़रूरत है तो मेरे पास घर पर वी.सी. का एक डिब्बा है जिसकी समय-सीमा जल्द ही समाप्त हो जाएगी, मैं आपको यह रियायती क़ीमत पर दे सकती हूँ, अगर आप उन्हें खरीदना चाहें तो कल उन्हें लेने के लिए आप दुकान में आ सकती हैं।” अगले दिन वह ग्राहक उत्पादों को ले जाने के लिए आई, और उसने उन्हें कुछ भी कहे बिना ले लिया। चूँकि मैंने अपने देह को धोखा देकर सच बोला था, मैंने अपने दिल में शांति का और चिंता से मुक्ति का अनुभव किया। इस घटना से गुज़रने के बाद मैं अपने दिल में द्रवित हो गई, मैंने देखा कि यदि मैं परमेश्वर के वचन के अनुसार आचरण करती हूँ, तथ्यों के अनुसार ग्राहकों को सच-सच बताती हूँ, और खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करती हूँ, तो मैं वास्तव में खुश रह सकती हूँ, केवल तभी मैं सच्ची मुक्ति और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकती हूँ! परमेश्वर को धन्यवाद हो!
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इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचन को पढ़ा जहाँ कहा गया है: “एक सामान्य इंसान की तरह व्यवहार करना सुसंगति से बोलना है। हाँ का अर्थ हाँ, नहीं का अर्थ नहीं है। तथ्यों के प्रति सच्चे रहें और उचित तरीके से बोलें। कपट मत करो, झूठ मत बोलो” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “क्षमता को सुधारने का प्रयोजन परमेश्वर द्वारा उद्धार प्राप्त करना है”)। मैंने ऊपर की सहभागिता को भी पढ़ा, जिसमें कहा गया था: “खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करने के तीन सिद्धांत हैं: एक, आपको एक नेक व्यक्ति होना चाहिए; दो, चालाकियों का सहारा न लो; तीन, विश्वासघाती मत बनो। यदि तुम इन तीन चीज़ों को करते हो तो तुम एक ईमानदार व्यक्ति बनोगे। एक नेक व्यक्ति होने का अर्थ सीधा और ईमानदार होना, और ईमानदारी से बोलना और नेकी से कार्य करना है, जहाँ एक का मतलब एक और दो का मतलब दो होता है” (ऊपर से सहभागिता में से)। परमेश्वर के वचन और मनुष्य की सहभागिता ने मुझे एक ईमानदार व्यक्ति बनने का मार्ग दिखाया। चाहे यह हमारे दैनिक जीवन में हो या हमारे कर्म-क्षेत्र में, या जब हम अन्य लोगों के साथ मिल रहे हों, हमें हमेशा वही कहना होगा जो हमारा तात्पर्य है और हमारी सोच और हमारे कर्म में समानता हो, हम दूसरों को धोखा न दें, झूठ न बोलें, और हमारे लिए एक का मतलब एक हो और दो का मतलब दो। ये वो चीजें हैं जिनकी परमेश्वर सामान्य मानवता वाले लोगों से माँग करता है। इसलिए मैंने उसी समय और वहीं पर एक संकल्प किया, चाहे मैं भाइयों या बहनों के साथ हूँ या मेरे ग्राहकों की उपस्थिति में रहूँ, मुझे अब से परमेश्वर के वचन पर भरोसा करके जीना है, एक सीधे और ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करना है और परमेश्वर के अवलोकन को स्वीकार करना है।
एक दिन मेरा सामना एक ग्राहक से हुआ और उसने मुझसे कहा: “मिस वू, मेरी त्वचा बहुत ख़ुश्क है, कुछ समय से मैं जिन उत्पादों का उपयोग कर रही हूँ, उनसे कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ा है, मैंने सुना है कि आप जिन उत्पादों को देती हैं, वे त्वचा में सुधार लाने के लिए बेहतर हैं, क्या आप मुझे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का एक सेट दे सकती हैं? दाम का कोई मुद्दा नहीं है।” जब मैंने उसे यह कहते सुना तो मैंने मन ही मन सोचा: 4,000-5,000 युआन की कीमत वाले उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का एक सेट मुझे 1,000 युआन से अधिक का लाभ दे सकता है, लेकिन यदि मैं उसकी त्वचा के लिए उपयुक्त उत्पादों का एक सेट बनाती हूँ तो उसकी क़ीमत केवल 1000 युआन के आसपास होगी, और मुझे सिर्फ 400 युआन के करीब मुनाफ़ा होगा। ठीक तभी जब मैं तय नहीं कर पा रही थी कि मुझे क्या चुनना चाहिए, मैंने परमेश्वर के वचन के बारे में सोचा जहाँ यह कहा गया है: “आज, तू परमेश्वर को संतुष्ट करने के योग्य है, जिसमें तू छोटी से छोटी बात पर ध्यान रखता है, तू सभी बातों में परमेश्वर को संतुष्ट करता है, तेरे पास परमेश्वर को सच्चाई से प्रेम करने वाला हृदय है, तू अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को देता है और हालांकि कुछ ऐसी बातें हैं जो तू नहीं समझ सकता है, तू अपनी प्रेरणाओं को सुधारने, और परमेश्वर की इच्छा को खोजने के लिए परमेश्वर के सामने आ सकता है, और तू वह सब कुछ करता है जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए आवश्यक है” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है”)। “मैं धर्मी हूँ, मैं वफ़ादार हूँ, मैं परमेश्वर हूँ जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है! मैं फ़ौरन इसे प्रकट कर दूँगा कि कौन सच्चा और कौन झूठा है” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “चवालीसवाँ कथन”)। ये सही है! परमेश्वर एक धर्मी और विश्वसनीय परमेश्वर है, वह एक ऐसा परमेश्वर भी है जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है। मुझे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए, अब मैं ऐसी चीजें नहीं कर सकती जो मेरे हितों की रक्षा के लिए परमेश्वर के नाम को तिरस्कृत करती हैं। इसलिए, मैंने उससे कहा: “उच्चतम गुणवत्ता वाले उत्पाद आपकी त्वचा के लिए उपयुक्त नहीं हैं, वे इसमें और अधिक बोझ डाल देंगे, वह सेट जो आपकी त्वचा के लिए सबसे उपयुक्त है, और जिसकी मैं सिफ़ारिश करती हूँ, वह केवल 1000 युआन से कुछ अधिक है, यह आपकी त्वचा की नींव से मरम्मत करना शुरू कर देगा, जो धीरे-धीरे आपकी त्वचा को बेहतर बना देगा।” इस तरह से पेश आने पर मेरे मन ने बहुत अधिक सहज महसूस किया। ग्राहक ने मुझसे कहा: “मिस वू, आप इतनी अच्छी हैं, आप ने जो कहा वह बहुत नेक है, मैं अन्य ग्राहकों का आपसे परिचय करा दूँगी कि वे आएँ और आपके उत्पादों का उपयोग करें।” मैं मुस्कुराई और बोली: “ऐसा नहीं है कि मैं अच्छी व्यक्ति हूँ, बात सिर्फ इतनी है कि हमें ईमानदार लोगों के रूप में कार्य करना चाहिए, केवल तभी हमें मन की शांति मिलेगीi।” कुछ ही समय में वह ग्राहक उन उत्पादों को खरीदने के लिए लौट आई, और मुझसे परिचय कराने के लिए वह अपने साथ कुछ दोस्तों को भी लाई, और मैंने उनके सामने वो उत्पाद पेश किये जो उनकी त्वचा के लिए उपयुक्त थे। धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, अधिकांश ग्राहकों ने मुझ पर अधिक से अधिक भरोसा रखा, उन सभी ने उनके लिए उत्पादों को हासिल करने के लिए मुझे नकद रकम दी, जिससे इन लेनदेन के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था करने का मुझ पर कोई दबाव नहीं हुआ। इस तरह मैंने खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश किया, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो वास्तव में परमेश्वर की माँगों के अनुसार कार्य कर सके, और मेरा व्यापार लगातार बेहतर होता गया। मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का आशीर्वाद था, न केवल परमेश्वर ने मुझे भौतिक चीज़ों को प्रदान किया, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसने मुझे यह भी सिखाया कि मुझे कैसा आचरण करना है। वास्तविक दुनिया में, परमेश्वर के वचन के अनुसार स्वयं एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में बर्ताव करना वाकई बड़ी बात है!
मैंने वापस अपने अतीत पर सोचा, किस तरह अपने व्यक्तिगत हितों के लिए मैंने शैतान की बुरी रुझानों का अनुसरण किया और शैतान के जीवन दर्शन का इस तरह से पालन किया जहाँ “मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में चतुराईपूर्ण जुबान होना बेहतर है” (“मजबूत हाथों और पैरों की तुलना में एक चतुराईपूर्ण ज़ुबान का होना बेहतर है”)। मैंने सोचा था कि झूठ बोले बिना मैं काम नहीं चला सकती थी, कि झूठ बोले बिना मैं बहुत धन नहीं कमा सकती थी, और नतीजतन मैं शैतान का उस हद तक खिलौना बन गई जहाँ मैं न तो एक मानव रही न ही एक जानवर! मैं निरंतर एक मानवता-विहीन व्यक्ति में, एक ऐसे व्यक्ति में जिसमें न तो जमीर था न ही तर्कपूर्ण विवेक, परिवर्तित होती गई, मैंने वो ईमानदारी और गरिमा खो दी थी जिसे स्वयं को पेश करते समय किसी व्यक्ति में होनी चाहिए। परमेश्वर मुझसे प्रसन्न नहीं था, एक व्यक्ति के रूप में मैं भरोसेमंद नहीं थी, प्रतिदिन मैं एक चोर की तरह व्यवहार कर रही थी, और इस डर में रहती थी कि किसी भी दिन मैं परेशानी में पड़ सकती हूँ और किसी मुकदमे में फँस सकती हूँ। मेरा जीवन बहुत तनावपूर्ण और थकाऊ था। परन्तु परमेश्वर जानता था कि मैं शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हो गई थी, और मुझे बचाने के लिए उसने मुझे ऐसे माहौल में रखा जो मुझे अनुशासित करे, साथ ही उसने मेरा नेतृत्व और मार्गदर्शन करने के लिए वचन दिए, ताकि मैं अपनी भ्रष्टता की कुरूपता को स्पष्ट रूप से देख सकूँ, ताकि मैं खुद को तुच्छ जान सकूँ और उसकी ओर मुड़ सकूँ, और एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में सच्चाई का अभ्यास कर सकूँ। जब मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार काम किया, जब मैंने खुद को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश किया, जब मैंने अपना व्यवसाय करते समय अपनी भूमिका निभाई, तो मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिला। इस अनुभव में मैंने देखा कि मुझे बचाने और जीवन के सही मार्ग पर लाने का यह इरादा परमेश्वर का था, ताकि मैं शैतान के हाथ का खिलौना न बनी रहूँ। मैं अपने तहेदिल से ऐसे प्यार और उद्धार के लिए आभारी हूँ जो परमेश्वर ने मुझे दिया है। अब इस बिंदु से आगे, मैं निश्चित रूप से परमेश्वर के वचन के अनुसार स्वयं को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में पेश करुँगी, परमेश्वर को संतुष्ट करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए एक सच्चे व्यक्ति के रूप में जीऊँगी!
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"सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया" से

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